रेलवे में निजीकरण का मुद्दा संसद से लेकर स्टेशनों के प्लेटफार्म तक छाया हुआ है। स्टेशनों को निजी हाथों में सौंपने के साथ ही पारंपरिक खानपान स्टॉल की जगह फूड कोर्ट बनाने से लाइसेंसी वेंडरों में नाराजगी है। 10 रुपये में यात्रियों को गर्मागर्म पूड़ी-सब्जी उपलब्ध कराने वालों के सामने भी रोजगार का संकट है। अखिल भारतीय रेलवे खानपान लाइसेंसीज वेलफेयर एसोसिएशन का आरोप है कि खानपान व्यवस्था बड़ी प्राइवेट कंपनियों के हवाले की जा रही है। छोटे खानपान लाइसेंसीज की समस्याओं को सरकार नजरअंदाज कर रही है।

लाइसेंसी वेलफेयर एसोसिएशन की मांग को संसद के बजट सत्र के दौरान भी सदस्यों ने उठाया। उस्मानाबाद के सांसद ओम पवन राजेनिंबालकर ने लोकसभा में भारतीय रेलवे के प्लेटफार्म पर कार्यरत छोटे खानपान लाइसेंसीज की समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि लाइसेंसीज वेंडर अपने स्टॉल, ट्रॉली, खोमचों पर चाय, शीतल पेय, पकौड़े, समोसा, स्नैक्स, फल बेचकर दिन-रात यात्रियों को खानपान रेलवे द्वारा उचित दर पर उपलब्ध कराते हैं। इनसे जुड़े लाखों लोगों की रोजी-रोटी के लिए कारगर कदम उठाए जाएं। वेलफेयर एसोसिएशन के मेमोरेंडम का भी जिक्र संसद में किया गया।

नई व्यवस्था 
स्टेशन पर फूड कोर्ट स्थापित किया जा रहा है
फूड कोर्ट में तरह-तरह के व्यंजन यात्रियों के लिए उपलब्ध हैं
ऑनलाइन खानपान की शुरुआत की गई है
मल्टी नेशनल कंपनियां भी स्टेशन पर रेस्टोरेंट खोल रही हैं
पैक्ड फूड की बिक्री हो रही है
स्टेशन पर निजी दुकानें आवंटित की जा रही हैं

पारंपरिक खानपान को तव्वजो कम
बड़ी कंपनियों के आने से पारंपरिक खाने को तवज्जो नहीं मिल रही है
लाइसेंसधारियों को कई आइटम बिक्री करने की अनुमति नहीं है
लाइसेंस नवीनीकरण में परेशानी होती है
लाइसेंसी वेंडरों की मृत्यु होने पर कानूनी वारिस को लाइसेंस मिलने में परेशानी
रेलवे द्वारा तय रेट में वृद्धि नहीं होने से परेशानी
फलों के स्टॉल पर पानी की बोतल बेचने तक की अनुमति नहीं

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