एक तरफ जहां देश में पुराने गैर जरूरी कानूनों को समाप्त कर न्याय व्यवस्था पर दबाव को कम किया जा रहा है तो वहीं दिल्ली में आज भी कई ऐसे कई गैर जरूरी कानूनों को वैधता मिली हुई है। यह कानून समय के साथ अपनी जरूरत और महत्व खो चुके हैं। इसके बावजूद सरकारें ने इन्हें खत्म करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। दिल्ली हाई कोर्ट की अधिवक्ता जूही अरोड़ा बताती हैं कि ऐसे कई कानून हैं जिन्हें बनाए जाने की वजह खत्म हो चुकी है, लेकिन वह अब भी अस्तित्व में हैं।

 

-एयरक्राफ्ट एक्ट, 1934

पतंग उड़ाने के लिए लाइसेंस और उड्डयन विभाग की अनुमति आवश्यक है। ऐसा न करने पर दस लाख रुपये तक का जुर्माना और दो साल की सजा का प्रविधान है, लेकिन इसका उपयोग नहीं होता है।

 

-इंडियन ट्रेजरार फंड एक्ट,1878

सड़क पर यदि किसी व्यक्ति को दस रुपये या इससे अधिक के मूल्य का कोई सामान मिलता है तो उसे पुलिस को जानकारी देना अनिवार्य है। इसके साथ ही यदि 180 दिनों तक कोई व्यक्ति अपने सामान या धनराशि का दावा पेश नहीं करता है तो उसे सरकारी खजाने में जमा कर लिया जाएगा। साकेत कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता वीरेंद्र कसाना बताते हैं कि फुटपाथ और सार्वजनिक संपत्ति को लेकर दिल्ली पर आधारित कई कानून हैं जिनका इस्तेमाल दिल्ली पुलिस ने करना बंद कर दिया है।

 

-दिल्ली पुलिस एक्ट सेक्शन 84

फुटपाथ पर कोई वाहन चलाता है या वाहन खड़ा कर देता है या पशु बांधकर फुटपाथ को बाधित करता है तो उस पर सौ रुपये का जुर्माना है और आठ दिन तक की सजा का प्रविधान है। लेकिन फुटपाथ पर कब्जा हटाने के लिए दिल्ली नगर निगम कार्रवाई करती है पर पुलिस इस एक्ट का इस्तेमाल नहीं करती।

 

-दिल्ली पुलिस एक्ट सेक्शन 86

सार्वजनिक स्थान पर और सड़कों के किनारे कपड़े धोना और नहाना अवैध है और इसके लिए सौ रुपये का जुर्माना है और आठ दिन तक की सजा का प्रविधान है, लेकिन इसका उपयोग भी नहीं किया जाता है।

 

-दिल्ली पुलिस एक्ट सेक्शन 94

दिल्ली में पतंग उड़ाने पर प्रतिबंध है और इसके अनुसार यहां पतंग उड़ाना दंडनीय अपराध है। इस एक्ट के तहत सौ रुपये का जुर्माना है और आठ दिन तक की सजा दी जा सकती है, लेकिन इसका इस्तेमाल नहीं हो रहा है।

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