पश्चिमी दिल्ली के मोतीनगर थाना क्षेत्र में कुत्तों के काटने से तीन वर्षीय एक बच्ची की मौत की घटना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। मामला तब और भी गंभीर हो जाता है, जब यह सामने आता है कि राजधानी में बेसहारा कुत्तों पर नियंत्रण के लिए प्रभावी ढंग से उपाय नहीं किए जा रहे हैं। इस घटना में पार्क में बैठी बच्ची को चार-पांच कुत्तों ने नोचकर लहूलुहान कर दिया था। उसे बेहोशी की हालत में अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। कुत्तों के आतंक का यह अकेला मामला नहीं है।

गंभीर चिंता की बात है कि दिल्ली में हर साल 30 हजार से ज्यादा लोग कुत्तों के आतंक का शिकार होते हैं, लेकिन स्थानीय निकाय कुत्तों पर नियंत्रण में विफल नजर आते हैं। एनिमल बर्थ कंट्रोल नियम 2001 के तहत हर इलाके में 80 फीसद बेसहारा कुत्तों का बंध्याकरण किया जाना चाहिए, लेकिन हकीकत इससे कहीं दूर है।

हैरानी की बात यह है कि स्थानीय निकायों को यह तक पता नहीं है कि उनके क्षेत्र में कितनी संख्या में बेसहारा कुत्ते हैं और कितनों का बंध्याकरण किया जाना है। ऐसा इसलिए है कि निगमों ने फंड के अभाव में पिछले पांच साल से बेसहारा कुत्तों का सर्वे ही नहीं किया है। बेसहारा कुत्तों की बढ़ रही संख्या को नियंत्रित करने को लेकर निगम कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है।

बेसहारा कुत्ते जिस तरह दिल्लीवासियों के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं, उसे देखते हुए यह आवश्यक है कि स्थानीय निकाय इनका सर्वे कराएं और बंध्याकरण को लेकर नियमों का पूरी तरह पालन करें और उसके अनुरूप तय संख्या में बेसहारा कुत्तों का बंध्याकरण करवाएं। इसके लिए निगमों को ऐसे वार्डों की पहचान करनी चाहिए, जहां सर्वाधिक संख्या में कुत्ते हैं, ताकि वहां इनकी संख्या प्राथमिकता के आधार पर घटाई जा सके।

कुछ तो अभी भी कर रहा हूँ आप लोगो के लिये ख़ैर आप email पर लिख भेजिए मुझे [email protected] पर

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