दिल्ली : दिल्ली  के सिंघु बॉर्डर पर चल रहे किसान आन्दोलन  की खबरे अब ज्यादा सुर्खियाँ नहीं बटोर पा रहीं है. गणतंत्र दिवस के उस हादसे के बाद अब किसान आन्दोलन में उस तरह का जोश नहीं देखनें को मिल रहा जो शुरुवाती दौर में हुआ था. युवा वर्ग के लोग सिंघु  बॉर्डर पर बहुत  कम ही दिखाई दे रहें है. लेकिन बुजुर्ग जिन्हें सुख के दिन घर पर बिताना चाहिए वो अपनें मांग के लिए और अपनी आने वाले पीढ़ी के लिए आन्दोलन में फिर से जान फूंक रहें है .बुजुर्ग के साथ ही अंतराष्ट्रिय महिला दिवस पर महिलाओ की तादात भी ज्यादा देखनें को मिली . आज ही किसान आन्दोलन को 102 दिन हो चुके है, इस मौके पर महिलाओं नें मच को संभाला तो वहीँ पुरुषो नें सभी के लिए खाना बनाया .

गणतंत्र दिवस के दिन हुए उस हादसे के बाद से किसान आन्दोलन कलंकित हो गया है, और यह सच है की आम जन की संवेदना अब किसानों के प्रति घटी नजर आ रही है. कुछ लोगो का कहना है की किसान आन्दोलन को खत्म करनें की यह कोई बड़ी चाल थी जिसमें वो सफल होते दिखाई देते है. आन्दोलन में न कोई उत्साह है न ही कोई जोश . आन्दोलन में बैठे बुजर्गो से, यहाँ क्यों बैठे है पूछे  जाने पर कहाँ की घर पर क्या करते,कुछ साथियों को जाते देखा तो हम भी आ गये . वहीँ कुछ नें कहा हम यहाँ अपनी उन तीन मांग को लेकर बैठे है. और तब तक बैठेगे जब तक पूरी नहीं हो जाती.

महिला दिवस पर मौजूद महिला मजदूर संघर्ष कमेटी (पंजाब) के मंच के पास पहुंचीं मानसा की गुरजीत कौर ने कहा कि आंदोलन कमजोर नहीं हुआ है। जब तक कृषि कानून रद नहीं होते, तब तक हम यहीं डटे रहेंगे।

फ़िलहाल किसान नेता अब अपनियो जिम्मेदारियों से पीछे हटते दिखाई दे रहें है. जिससे युवा वर्ग अब इस आन्दोलन से अपनें कदम पीछे हटा लिए है. देखना है कब तक बुजुर्ग इस आन्दोलन की जान में साँस भर पाते है.

 

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