एक लंबे समय से इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों को परंपरागत गाड़ियों जो पेट्रोलियम और उसके बाई प्रोडक्ट से चलती हैं, उनके विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। लिथियम आयन बैटरी बढ़ते प्रदूषण के लिए रामबाण की तरह प्रचारित की जा रही है। ऐसे समय में, BMW, मर्सिडीज, फोर्ड जैसी बड़ी कंपनियां इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों के विनिर्माण को पूरी तरह अपनाने की बात कर रही है। एक बात तो स्वाभाविक है कि इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियां वास्तव में परंपरागत गाड़ियों की अपेक्षा कम प्रदूषण फैलाती हैं किन्तु इसे भ्रम मात्र की भी संज्ञा दी जाती है। आइये हम जानते हैं कि कैसे भारत सरकार इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों के विकल्प को किस प्रकार तैयार कर रही है?

 

फ्लेक्स फ्यूल इंजन पर बढ़ती निर्भरता

गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भारत में कार मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ी बड़ी कंपनियों को फ्लेक्स फ्यूल इंजन बनाने का निर्देश दिया है। फ्लेक्स फ्यूल इंजन एक ही समय पर दो प्रकार के ईंधन का प्रयोग कर सकते हैं। सरकार की योजना एथेनॉल, मीथेनॉल और गैसोलीन पर चलने वाली गाड़ियों को बढ़ावा देने की है। बता दें कि फ्लेक्स फ्यूल इंजन गैसोलीन को एथेनॉल अथवा मीथेनॉल अथवा दोनों के मिश्रण के साथ प्रयोग में लाते हैं।

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वहीं, नितिन गडकरी का दावा है कि वह जल्द ही दिल्ली में हाइड्रोजन संचालित कार चलाकर दिखाएंगे। उन्होंने एक कॉन्फ्रेंस में कहा ‛“मेरे पास ग्रीन हाइड्रोजन पर बसें, ट्रक और कार चलाने की योजना है, जो शहरों में सीवेज के पानी और ठोस कचरे का उपयोग करके उत्पादित की जाएंगी।”

 

वर्तमान में भारत में परिवहन का 98% हिस्सा पेट्रोलियम संचालित है तथा जैव ईंधन मात्र 2% प्रयोग होता है। भारत अपने कुल पेट्रोलियम उपभोग में 85% विदेशों से आयात करता है। हर वर्ष 8 लाख करोड़ रुपए के पेट्रोलियम प्रोडक्ट आयात किए जाते हैं। यदि ऐसी ही निर्भरता पेट्रोल पर बनी रहे तो 5 वर्षों में इंपोर्ट बिल 25 लाख करोड़ रुपए हो जाएगा।

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भारत में रिलायंस, GAIL, NTPC, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन तथा L&T इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। रिलायंस ने 2035 तक कंपनी के कार्बन उत्सर्जन को शून्य के स्तर पर लाने का लक्ष्य रखा है।

 

बिजली उत्पादन को बढ़ाना होगा

लिथियम आयन बैटरी की माइनिंग स्वयं एक प्रदूषक प्रक्रिया है। एक बार लिथियम भूमि की सतह से प्राप्त कर लिया जाए तो उससे बैटरी बनाने में अत्यधिक ऊर्जा व्यय होती है। यहां पहली समस्या बैटरी की Recycling की भी है। यदि वर्तमान समय में प्रयोग हो रही गाड़ियों को पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल में बदला जाए तो इतनी बड़ी संख्या में बढ़ने वाली बैटरी को Recycle करने की क्या व्यवस्था होगी इसका कोई ठोस उत्तर नहीं मिल सका है। दूसरी समस्या, इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों के लिए पर्याप्त बिजली आपूर्ति की है। यदि इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों ने परंपरागत गाड़ियों को पूरी तरह स्थानांतरित कर दिया तो उनकी संख्या के अनुरूप चार्जिंग स्टेशन और उसी अनुपात में बिजली उत्पादन भी बढ़ाना पड़ेगा, जो कि एक कठिन कार्य है।

 

 

पेट्रोल संचालित गाड़ियों का विकल्प क्या है?

भारत में अधिकांश बिजली उत्पादन परंपरागत ऊर्जा संसाधनों के दोहन से होता है। भारत में बिजली संयंत्र मुख्यतः कोयले का उपयोग करते हैं। यदि इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों की बिक्री बढ़ेगी तो भारत को बिजली उत्पादन भी बढ़ाना पड़ेगा। ऐसे में, यदि कोयले का दोहन बढ़ता है तो पर्यावरण उतना ही प्रदूषित होगा, जितना अभी पेट्रोल संचालित गाड़ियों के कारण हो रहा है। यह स्थिति केवल भारत के साथ नहीं है बल्कि अधिकांश विकासशील देशों में इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों के प्रयोग के लिए आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर मौजूद नहीं है।

यह अनुमान लगाना कोरी कल्पना मात्र होगी कि कोयला संचालित अन्य संयंत्रों के स्थान पर बड़ी संख्या में न्यूक्लियर पावर प्लांट बना दिए जाएं। इसके लिए पर्याप्त धनराशि नहीं है और वैश्विक स्तर पर न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने का विचार असंभव एवं विध्वंसकारी है। अतः प्रश्न यह है कि पेट्रोल संचालित गाड़ियों का विकल्प क्या है? भारत इस पर तेजी से कार्य कर रहा है।

 

हाइड्रोजन फ्यूल है दूसरा विकल्प

सरकार मिशन हाइड्रोजन पर भी कार्य कर रही है। पृथ्वी पर पानी सबसे बड़े संसाधन के रूप में उपस्थित है। जल (H2O) में हाइड्रोजन के दो परमाणु होते हैं। बिजली की सहायता से हाइड्रोजन को ऑक्सीजन से अलग करना संभव है और इस प्रक्रिया में प्राप्त हाइड्रोजन का प्रयोग ईंधन के रूप में हो सकता है। हालांकि, अभी हाइड्रोजन इंडस्ट्री अपने शुरुआती दौर में है किंतु 2018 से ऑस्ट्रेलिया में हुई एक रिसर्च में हाइड्रोजन का प्रयोग करके कार, स्टील प्लांट, पानी के जहाज आदि चलाने पर शोधकार्य हो रहा है।

हाइड्रोजन और बायो ईंधन को बढ़ावा देने की है आवश्यकता

भारतीय रेलवे भी डीजल संचालित इंजन को हाइड्रोजन संचालित इंजन में परिवर्तित करने की योजना पर कार्य कर रही है। सरकार की इन योजनाओं के कारण भारत में बड़े कार निर्माताओं ने फिलहाल इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों के बाजार में नहीं उतरने का फैसला किया है। स्पष्ट है कि भारत की कार निर्माता कंपनियां ग्रीन एनर्जी लक्ष्य के लिए सरकार के साथ आगे बढ़ने को तैयार हैं। भारत में जिस प्रकार एथेनॉल और हाइड्रोजन फ्यूल इंडस्ट्री को बढ़ावा दिया जा रहा है, वह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए क्रांतिकारी सिद्ध हो सकता है। यदि भारतीय अर्थव्यवस्था हाइड्रोजन ईंधन का प्रयोग करने में विश्व की प्रथम अर्थव्यवस्था बन जाती है, तो हम पेट्रोल पर से अपनी निर्भरता पूरी तरह समाप्त कर सकेंगे। इतना ही नहीं बल्कि भारत अपनी हाइड्रोजन ईंधन बनाने की तकनीक का निर्यात भी कर सकता है।

 

भारत के विस्तृत कृषि क्षेत्र के बलपर हम बायो इथेनॉल इंडस्ट्री को न केवल आत्मनिर्भर बना सकते हैं, बल्कि ऊर्जा निर्यातक देश भी बन सकते हैं। हाइड्रोजन और बायो ईंधन को बढ़ावा देकर भारत इलेक्ट्रॉनिक गाड़ियों की अंधी दौड़ से स्वयं को अलग कर सकता है।

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