बिहार की राजनीति में अब तक सिर्फ दो झोंके आये हैं! पहला 90 के दशक में और दूसरा 2005 में! उसके बाद सिर्फ मंद मंद हवा ही चली है, जिसकी वजह से वहां के राजनीतिक जंगल में जंगली और बूढ़े पेडों की भरमार सी हो गयी है!

लेकिन सवाल ये है कि क्या बिहार ऐसा कर पायेगा?

बिहार के एक नेता की बेटी पुष्पम प्रिया चौधरी, इन दिनों बिहार की ख़ाक छान रही हैं! मैडम की पढ़ाई लिखाई विदेश में हुई है! वे रोजगार की बात कर रही हैं! कल-कारखानों को खुलवाने की बात कर रही हैं! स्कूल और अस्पताल की बात कर रही हैं! कुपोषण और मौसमी बीमारियों की बात कर रही हैं! जहाँ भी जा रही हैं, लोगों से मिल रही हैं! उनकी समस्याएं सुन रही हैं!

…और बिहारी?

बिहारी इनको हजम नहीं कर पा रहा है! इनपर फब्तियां कस रहा है! पुष्पम की बातचीत और मुद्दों से ज्यादा इंटरेस्ट उसे इनकी काली ड्रेस में है!

यहाँ मैं जिक्र करना चाहूंगा, देश की सबसे टैलेंटेड सरपंच, छवि राजावत का! पुष्पम प्रिया और छवि राजावत में समानता ये है कि दोनों विदेश में पढ़ी हैं! छवि की पृष्ठभूमि सेना परिवार की है तो पुष्पम की राजनीतिक! मिलनसार दोनों हैं!

राजस्थान के टोंक जिले के एक छोटे से गांव की रहने वाली छवि ने गांव की खातिर अपनी कॉर्पोरेट जॉब छोड़ दी और वो कर दिखाया जो देश के पंचायती राज के इतिहास में एक मिसाल बन गयी!

छवि एकमात्र ऐसी भारतीय सरपंच हैं जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित किया है! देश के राष्ट्रपति एपीजे कलाम जिसके मुरीद थे!

फर्क सिर्फ इतना है कि छवि से मिलने वाले लोगों ने उनके कपड़ों पर कम और उनकी काबिलियत पर ज्यादा ध्यान दिया!

बिहारियों को अपनी गिरेबान में झाँकने का समय आ गया है! कपड़ो और फिगर पर कम, काबिलियत पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है!

अभी नहीं तो कभी नहीं…को अपना सूत्रवाक्य बनाने की जरूरत है!

-तुम्हारे पुस्तकालय जलाये गए ……. तुम खामोश रहे!
-तीन बार तुम्हे विभाजित किया गया….. तुम खामोश रहे!
-तुम्हारे खनिज कोई और ले गया ….. तुम खामोश रहे!
-तुम्हारे कल कारखाने बंद कर दिए गए ….. तुम खामोश रहे!
-तुम्हारे चुने हुए प्रतिनिधियों ने तुम्हे ट्रेनों में भरकर दूसरे राज्यों में भेजा …..तुम खामोश रहे!
-दूसरे राज्यों में तुम्हे पीटा गया। …… तुम खामोश रहे!
-तुम्हारे नेता तुम्हारे पशुओं का चारा तक खा गए…… तुम खामोश रहे!

-आज बाढ़ में बह रहे हो, दाने दाने को मोहताज हो चुके हो, अस्पताल और दवाओं के अभाव में तुम्हारा होम सेक्रेटरी दम तोड़ दे रहा है….

…और तुम एक महिला नेता के कपड़ों में उलझे हो?

महामारी में हजारों किलोमीटर तक पैदल चलकर अपने गांव पहुंचे हो…फिर भी तुम्हारा ये हाल है?

पांच साल में एक बार मौका आता है अपनी किस्मत पलटने का! तुम आखिरी पंद्रह दिन मौज में गुजार देते हो! पहली पार्टी से दारू लिया तो दूसरी से चखना! तीसरे से कंबल लिया तो चौथे से कैश!

इस बार अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करो! हर बार की तरह इस बार भी तुम्हारे सामने दो विकल्प होंगे-

– या तो पंद्रह दिन मौज कर लो!
-या फिर अपने बच्चों की किस्मत लिख लो!

फैसला तुम्हारे हाथ में है!

तुम्हारे मंसूबो पर ये खरी नहीं उतरी तो पांच साल बाद उठाकर बाहर फेंक देना! लेकिन पहले सुनो तो सही वह क्या कह रही है!!

क्या पता यही तुम्हारे बिहार की किस्मत बदल दे!

साभार: Facebook महोदया

कुछ तो अभी भी कर रहा हूँ आप लोगो के लिये ख़ैर आप email पर लिख भेजिए मुझे [email protected] पर

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