दिल्ली की राजनीती में काफी दिनों से बहुत उतार-चढ़ाव हो रहा है , एक तरफ जहाँ GNCT बिल लोकसभा एवं राज्यसभा में पास हो गया है तो वही दिल्ली को सँभालने की अहम भूमिका अब दिल्ली के उपराज्यपाल के हाथो में आ गई है । यानि की दिल्ली में सरकार का मतलब अब उपराज्यपाल ही मन जायेगा।

दिल्ली में कोई भी कानून बनने से और दिल्ली सरकार के लिए किसी भी कार्यकारी फैसले से पहले उप राज्यपाल की राय लेना अनिवार्य होगा। इससे पहले बुधवार को राज्यसभा में विपक्ष ने बिल पारित कराने के लिए मत विभाजन की मांग की। इसके बाद 45 के मुकाबले 83 मतों से विधेयक पारित हो गया। इसके बाद विपक्षी दलों ने वाकआउट कर लिया गया । फिर विधेयक के विभिन्न खंडों को ध्वनिमत से पारित करा दिया गया।

.विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा
.सभी विधायी व प्रशासनिक निर्णयों में उपराज्यपाल से मंजूरी लेना दिल्ली सरकार के लिए अनिवार्य होगा
.दिल्ली सरकार को विधायी प्रस्ताव 15 दिन पहले और प्रशासनिक प्रस्ताव सात दिन पहले उपराज्यपाल को भिजवाना होगा
.उपराज्यपाल यदि सहमत नहीं हुए तो वह अंतिम निर्णय के लिए उस प्रस्ताव को राष्ट्रपति को भी भेज सकेंगे
.यदि कोई ऐसा मामला होगा, जिसमें त्वरित निर्णय लेना होगा तो उपराज्यपाल अपने विवेक से निर्णय लेने को स्वतंत्र होंगे
.विधानसभा या उसकी कोई समिति प्रशासनिक फैसलों पर जांच नहीं बैठा सकेंगी।

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